कब और क्यों हुआ था भक्ति आंदोलन, यहां पढ़ें पूरा इतिहास

भारत के इतिहास में कई महत्त्वपूर्ण आंदोलन हुए हैं। इन आंदोलनों में से एक भक्ति आंदोलन शामिल है। इस लेख में हम भक्ति आंदोलन के बारे में जानेंगे, जिसका भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा था। हालांकि, यहां जानना जरूरी है कि यह आंदोलन कब और क्यों हुआ था। 

Kishan Kumar
Jun 16, 2025, 15:58 IST
भक्ति आंदोलन का इतिहास
भक्ति आंदोलन का इतिहास

भारत का इतिहास उठाकर देखें, तो हमें कई महत्त्वपूर्ण आंदोलन देखने को मिलेंगे। इस कड़ी में भारत में कई सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन भी हुए हैं, जिनमें भक्ति आंदोलन प्रमुख आंदोलनों में शामिल रहा है।

यह आंदोनल प्रमुख रूप से 8वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक सक्रिय रहा था। वहीं, 15वीं शताब्दी के बाद का वह समय था, जब यह आंदोनल अपने चरम पर पहुंचा था। इस लेख में हम भक्ति आंदोलन के बारे में जानेंगे।

क्या था भक्ति आंदोलन का उद्देश्य 

भक्ति आंदोलन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करने के लिए ईश्वर के प्रति भक्ति और समर्पण को प्रमुख साधन के रूप में स्थापित करना था। 

भक्ति आंदोलन की मुख्य विशेषताएं

-एकल ईश्वर पर बल: इस आंदोलन के तहत संतों द्वारा ईश्वर की एकता पर जोर दिया गया था, जिससे एकेश्वरवाद की भावना को बढ़ावा मिला। 

-व्यक्तिगत संबंधः इस आंदोलन में जटिल अनुष्ठानों और पुरोहित वर्ग के बजाय सीधे ईश्वर की भक्ति पर जोर दिया गया, जिसमें ईश्वर तक पहुंचने के लिए प्रेम और विश्वास का मार्ग सुझाया गया।

-जातिवाद का खंडन: आंदलोन में समाज में समानता पर जोर दिया गया, जिसके तहत जाति, लिंग और सामाजिक भेदभाव का विरोध किया गया। 

-बताया गया गुरु का महत्त्वः भक्ति आंदोलन में ईश्वर तक पहुंचने के लिए गुरु का महत्त्व बताया गया। संतों द्वारा गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण पर जोर दिया।

क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग: भक्ति आंदोलन में संतों ने संस्कृत भाषा पर जोर देने के बजाय आम लोगों द्वारा बोली जाने वाली क्षेत्रीय भाषाओं पर जोर दिया। इससे भाषाओं को भी बढ़ावा मिला और संतों का संदेश जन-जन तक पहुंचा।

-साधारण रही जीवन शैलीः भक्ति आंदोलन में संतों द्वारा साधारण जीवनशाली को अपनाया गया। इस दौरान उन्होंने किसी भी प्रकार के आडंबर का विरोध किया।

-हिंदू-मुस्लिम समन्वय: आंदोलन के दौरान हिंदू-मुस्लिम एकता पर भी जोर दिया गया, जिससे दोनों धर्म के समुदायों के बीच बेहतर समन्वय रहे।

भक्ति आंदोलन की दो प्रमुख धाराएं

भक्ति आंदोलन की दो प्रमुख धाराएं रहीं, जिनमें निर्गुण भक्ति धारा और सगुण भक्ति धारा शामिल थी।

-निर्गुण भक्ति धारा: इसके तहत निराकार और निराकार ब्रह्म की उपासना होती थी, जिसका कोई रूप या गुण नहीं होता। इसके प्रमुख संतों में कबीर रहे हैं।

-सगुण भक्ति धारा: इसमें ईश्वर के साकार रूप जैसे राम या कृष्ण की उपासना होती थी। इसके प्रमुख संतों की बात करें, तुलसीदास, सूरदास और मीराबाई शामिल थीं।

भक्ति आंदोलन का क्या रहा प्रभाव

भक्ति आंदोलन का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा। क्योंकि, इस आंदोलन ने समाज में एकेश्वरवाद को बढ़ावा देने के साथ-साथ धार्मिक कर्मकांड का विरोध किया और ईश्वर तक पहुंचने के लिए प्रेम और विश्वास को आधार बताया। साथ ही, आंदोलन से क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा मिला और जन-जन तक संतों के संदेश पहुंचे। वहीं, इससे हिंदू-मुस्लिम एकता को भी बल मिला।

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Kishan Kumar
Kishan Kumar

Senior content writer

I did my graduation from GGSIPU University, Delhi. I started my Career from Dainik Jagran(Print) as a reporter then I switched to Amar Ujala(Print) as a Sub-Editor. I used to cover all technical universities of Delhi including; DTU, IIIT, DSEU, IGDTUW & NSUT. Currently I work for Jagran Josh(A digital wing of Dainik Jagran). Here, I create digital content for General Knowledge Section. My expertise is in General Knowledge, Creative writing, Research, Hindi & English typing.
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