भारत में एक समय हुआ करता था, जब मुगलों के साथ-साथ प्रांतों का शासन नवाबों के हाथ में रहा था। धीरे-धीरे नवाबों ने पूरी सत्ता अपने हाथों में ले ली और प्रांतों पर स्वायत्तता घोषित कर दी। देश आजाद हुआ, तो करीब 550 रिसायसतें हुईं। इन रियासतों में से एक रियासत उत्तर प्रदेश के रामपुर की भी थी। यह रिसायसत उस समय देश की सबसे अमीर रिसायसतों में से एक थी।
रामपुर के नवाब के पास इतनी दौलत थी कि उन्होंने अपने घर तक ट्रेन लाइन बिछवा दी थी। साथ ही, खुद का निजी रेलवे स्टेशन भी बनवाया था। कौन थे यह नवाब, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
मिलक से रामपुर के बीच बिछवाई रेल लाइन
रामपुर के नौवें नवाब रहे हामिद अली खान ने मिलक से रामपुर के बीच ट्रेन लाइन बिछवाने का निर्णय लिया। उन्होंने करीब 40 किलोमीटर की दूरी तक ट्रेन लाइन बिछवाई।
वहीं, साल 1925 में उन्होंने बड़ौदा स्टेट ट्रेन बिल्डर्स से चार बोगियां खरीदीं, जिसे उन्होंने अपने तरीके से तैयार करवाया। इसमें किचन से लेकर बेडरूम व अन्य सुख सुविधाओं को जोड़ा गया था। वह एक बोगी में खुद चलते थे, तो बाकी में उनका परिवार व नौकर और खानसामा चलते थे।
Salon नाम से जाने जाते थे कोच
नवाब द्वारा चार कोच को खरीदे जाने के बाद इन्हें सैलून नाम दिया गया। नवाब व उनका परिवार अक्सर इन कोच के माध्यम से यात्रा किया करते थे।
रेल मंत्रालय को देनी होती थी जानकारी
नवाब को यदि ट्रेन से कही जाना होता था, तो उन्हें इसकी सूचना रेल मंत्रालय को देनी होती थी। इसके बाद उनकी बोगियों को संबंधित रूट पर जाने वाली ट्रेन में जोड़ दिया जाता था।
नवाब रजा अली खान के हाथों में आई कमान
साल 1930 में हामिद अली खान का निधन हो गया, जिसके बाद नवाब रजा अली खान के हाथों में कमान आ गई और वह भी खुद की निजी ट्रेन से चला करते थे।
बंटवारे में काम आई बोगियां
साल 1947 में जिस समय भारत का बंटवारा हुआ, तो यहां रहने वाली अधिकांश आबादी मुस्लिम थी। सभी लोगों की ने एकमत होते हुए पाकिस्तान जाने का निर्णय लिया। ऐसे में अधिक लोगों को एक साथ पाकिस्तान भेजना मुश्किल काम था। क्योंकि, उस समय साधन की समस्या सामने आ गई थी। इसे देखते हुए नवाब ने अपनी बोगियों को इस काम में लाने का निर्णय लिया, जिसके बाद यहां की आबादी को पाकिस्तान तक पहुंचाया गया।
1966 तक इस्तेमाल हुई बोगियां
नवाब रजा अली खान ने साल 1954 में दो बोगियों को भारत सरकार को दे दिया। साल 1966 तक इन बोगियों का इस्तेमाल किया गया। हालांकि, इसी वर्ष उनके निधन के बाद पहिये की रफ्तार धीमी पड़ गई। वहीं, आजादी के बाद रियासतों को मिलने वाला प्रीवी पर्स खत्म हो गया, जिसके बाद स्टेशन भी बंद हो गया।
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