अरावली पर्वतमाला रेंज (Aravalli Range) दुनिया की सबसे प्राचीन फोल्ड पर्वत प्रणालियों में से एक है। यह भारत के चार राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों दिल्ली (NCT), हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक फैली हुई है। हाल ही में यह क्षेत्र सुप्रीम कोर्ट के एक अहम आदेश के कारण राष्ट्रीय चर्चा में है, जिसमें अरावली की नई, समान (uniform) परिभाषा, खनन पर शर्तें और पर्यावरणीय संरक्षण से जुड़े दिशा-निर्देश तय किए गए हैं।
अरावली क्यों चर्चा में है? (Why in News)
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नई समान परिभाषा को मंजूरी: नवंबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए अरावली पर्वतमाला की एक समान, अखिल-भारतीय परिभाषा को मंजूरी दी। इससे पहले अलग-अलग राज्यों में अलग व्याख्याएँ लागू थीं, जिस कारण से सबसे पुरानी पर्वतमाला चर्चा में आ गयी है।
अरावली की पहाड़ियों का भौगोलिक विस्तार (Geographic Extent)
अरावली पर्वतमाला की कुल लंबाई लगभग 600–700 किमी मानी जाती है, जिसे कई स्रोतों में लगभग 692 किमी बताया गया है। यह पर्वत श्रेणी उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा में फैली हुई है। इसकी शुरुआत दिल्ली से होती है, जहाँ से यह दक्षिणी हरियाणा के गुरुग्राम, फरीदाबाद और नूंह जिलों तक फैली है, इन्हें राज्य सरकारों द्वारा 37 जिलों में मान्यता दी गई है।
इसके बाद अरावली राजस्थान में प्रवेश करती है और अलवर, जयपुर, उदयपुर तथा माउंट आबू जैसे क्षेत्रों से होते हुए आगे बढ़ती है। अंततः यह पर्वतमाला गुजरात के पालनपुर–अहमदाबाद क्षेत्र के पास जाकर समाप्त होती है।
अरावली पर्वतमाला थार मरुस्थल के विस्तार को आंशिक रूप से रोकने, भूजल रिचार्ज, जलवायु संतुलन और जैव विविधता संरक्षण में अहम भूमिका निभाती है।
अरावली रेंज की क्या है नई परिभाषा:
अरावली जिलों में स्थित ऐसी कोई भी भू-आकृति, जिसकी ऊँचाई आसपास की स्थानीय सतह की तुलना में 100 मीटर या उससे अधिक हो, उसे अरावली पहाड़ियाँ माना जाएगा। वहीं, अरावली रेंज का गठन तब माना जाएगा जब दो या उससे अधिक अरावली पहाड़ियाँ आपस में जुड़ी हों और उनके बीच की दूरी 500 मीटर से अधिक न हो, जहाँ यह दूरी दोनों ओर की सबसे निचली कंटूर रेखा की बाहरी सीमा के अंतिम बिंदुओं के बीच मापी जाती है।
‘पुनर्वर्गीकरण’ को लेकर क्या है विवाद
पर्यावरणविदों का कहना है कि नए मानदंड के कारण हरियाणा और राजस्थान के बड़े हिस्से की नीची पहाड़ियाँ और फुटहिल्स कानूनी रूप से अरावली की श्रेणी से बाहर हो सकती हैं।
वहीं आलोचकों के अनुसार, 90% तक क्षेत्र नई परिभाषा से बाहर हो सकता है, इससे पर्यावरणीय सुरक्षा कमजोर होने का खतरा बढ़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने MoEF&CC द्वारा प्रस्तावित अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा को स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया है कि यह परिभाषा अब नियामक उद्देश्यों के लिए बाध्यकारी होगी। इसके तहत अरावली के कोर या “इनवायलेट” (Inviolate) क्षेत्रों में खनन गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा है कि खनन से जुड़े सीमित अपवाद केवल विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में दिए गए विशिष्ट प्रावधानों के अनुसार और कड़े पर्यावरणीय मानकों के तहत ही लागू किए जा सकेंगे।
खनन पर रोक और Sustainable Mining Plan
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नए खनन पट्टे (leases) तब तक नहीं दिए जाएंगे जब तक
Mining Plan for Sustainable Management (MPSM) तैयार और स्वीकृत न हो -
यह योजना ICFRE द्वारा तैयार की जाएगी
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मौजूदा खनन पर भी कड़े वैज्ञानिक और पर्यावरणीय मानक लागू होंगे
सरकार का पक्ष और आश्वासन
सरकार ने स्पष्ट किया है कि दिल्ली के अरावली क्षेत्र में खनन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा और इसमें किसी भी प्रकार की ढील नहीं दी जाएगी। सरकार का दावा है कि अरावली की नई परिभाषा का उद्देश्य पर्यावरणीय सुरक्षा को कमजोर करना नहीं, बल्कि वैज्ञानिक आधार पर ज़ोनिंग कर बेहतर और प्रभावी प्रवर्तन सुनिश्चित करना है। इसके साथ ही Mining Plan for Sustainable Management (MPSM) के माध्यम से अवैध खनन पर कड़ी और प्रभावी रोक लगाने की व्यवस्था की जाएगी।
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि, ‘’यह निष्कर्ष निकालना गलत होगा कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली सभी भू-आकृतियों में खनन की अनुमति है।’’
Aravalli Hills: Protecting Ecology and Ensuring Sustainable Development
पर्यावरणीय महत्व (Ecological Significance)
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थार मरुस्थल से आने वाली रेत और धूल को रोकने में ढाल
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दिल्ली-NCR की वायु गुणवत्ता के लिए बेहद महत्वपूर्ण
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जल सुरक्षा, वन क्षेत्र, जैव विविधता और जलवायु सहनशीलता का आधार
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पहले से ही अवैध खनन और अतिक्रमण से क्षति
विशेषज्ञों की चेतावनी है कि यदि सुरक्षा कमजोर हुई तो इसका असर जलवायु, स्वास्थ्य, जल संकट और रेगिस्तानीकरण पर पड़ेगा।सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश अरावली क्षेत्र के लिए एक निर्णायक मोड़ है। यह मुद्दा पर्यावरणीय शासन, विकास बनाम संरक्षण, और दिल्ली-NCR की पारिस्थितिक सुरक्षा के लिहाज़ से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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