भारत का वह शासक जिसने मुगलों को दिये 23 किले, जानें नाम

Oct 1, 2025, 16:41 IST

इतिहास उठाकर देखें, हमें अतीत के पन्नों में पुरंदर की संधि देखने को मिलती है। यह संधि मुगलों और मराठाओं के बीच हुई थी और इसमें शिवाजी द्वारा मुगलों को 23 किले सौंपे गए थे, क्या थी यह संधि और क्या थी इतिहास की यह घटना, जानने के लिए यह लेख पढ़ें। 

पुरंदर की संधि
पुरंदर की संधि

भारत का इतिहास उठाकर देखें, तो अतीत के पन्नों में हमें अलग-अलग घटनाएं देखने को मिलती हैं। इस कड़ी में इतिहास में एक ऐसी घटना भी हुई थी, जिसमें भारत के एक शासक ने मुगलों को 23 किले सौंपे थे। दरअसल, ऐसा एक संधि के तहत किया गया था, जो कि इतिहास की महत्त्वपूर्ण संधियों में से एक थी।

इस संधि के ऊपर अक्सर UPSC, State PCS व अन्य परीक्षाओं में सवाल पूछे जाते हैं। इस कड़ी में हम इस लेख के माध्यम से भारतीय इतिहास की इस घटना के बारे में जानेंगे। 

क्या थी पुरंदर की संधि

पुरंदर की संधि (Treaty of Purandar) 11 जून, 1665 को हुई थी। यह संधि मुख्य रूप से छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगलों के सेनापति जय सिंह प्रथम के बीच हुई थी। इस संधि के तहत शिवाजी महाराज ने अपने 35 किलों में से 23 किलों को मुगलों को सौंप दिया था। 

क्यों हुई थी पुरंदर की संधि

मुगलों की ओर से सेनापति राजा जय सिंह प्रथम ने शिवाजी के प्रमुख पुरंदर के किले को घेर लिया गया था। जय सिंह प्रथम को मुगल शासक औरंगजेब द्वारा भेजा गया था, जिन्होंने मराठाओं के अन्य किलों को भी घेर लिया था। ऐसे में शिवाजी व उनके परिवार की सुरक्षा खतरे में थी। ऐसे में रणनीतिक रूप से निर्णय लेते हुए शिवाजी ने यह संधि की थी।

इस संधि का उद्देश्य हार मानना नहीं था, बल्कि कुछ समय के लिए स्थिर होना था। इससे मराठा साम्राज्य को फिर से तैयार होने के लिए समय मिलता और वे आगे के युद्ध के लिए तैयारी करते। 

क्या थी संधि की शर्तें

संधि के तहत अलग-अलग शर्तें रखी गई थीं, जो कि इस प्रकार थींः

-शिवाजी ने अपने कुल 35 किलों में से 23 किलों का अधिकार मुगलों को दे दिया था। ऐसे में अब उनके पास सिर्फ 12 किले ही बचे थे।

-शिवाजी द्वारा मुगलों को करीब 4 लाख हूण राजस्व देने वाली जमीन भी मुगलों को सौंपनी पड़ी थी। साथ ही, उनके पुत्र संभाजी को भी मुगल दरबार में 5 हजार घोड़ों की मनसबदारी दी गई थी।

-शिवाजी ने आवश्यकता पड़ने पर मुगलों का साथ देने का वादा किया था।

हालांकि, आपको बता दें कि इस दौरान छत्रपति शिवाजी को युद्धों में मुगलों की रणनीति समझने का मौका मिला। उन्होंने 1670 में अपने सभी किले वापस जीत लिये थे और 1674 में स्वतंत्र छत्रपति का ताज पहना था। 

Kishan Kumar
Kishan Kumar

Senior content writer

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