Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2025: गुरु तेग बहादुर को क्यों कहा जाता है ‘हिंद की चादर’, जानें वजह

Nov 25, 2025, 08:00 IST

Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2025: सिख धर्म में 24 नवंबर का विशेष महत्त्व है। इस दिन सिखों के 9वें गुरु यानि कि गुरु तेग बहादुर का शहीदी दिवस होता है। ऐसे में इस दिवस को लेकर 25 नवंबर को देश की राजधानी दिल्ली समेत अन्य राज्यों में छुट्टी की भी घोषणा की गई है। गुरु तेग बहादुर को ‘हिंद की चादर’ भी कहा जाता था। क्या थी यह वजह और क्या है इसके पीछे का इतिहास, जानने के लिए यह लेख पढ़ें। 

गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस 2025
गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस 2025

Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2025: सिख धर्म में 24 नवंबर का विशेष महत्त्व है। क्योंकि, इस दिन सिखों के 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर का शहीदी दिवस होता है। ऐसे में इस दिवस को लेकर 25 नवंबर को देश की राजधानी दिल्ली समेत अन्य राज्यों में छुट्टी की भी घोषणा की गई है। उन्हें निडरता, धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा, अद्वितीय आध्यात्मिक शक्ति और महान बलिदान के लिए जाना जाता है। गुरु तेग बहादुर को ‘हिंद की चादर’ भी कहा जाता है। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि आखिर गुरु तेग बहादुर को ही ‘हिंद की चादर’ क्यों कहा जाता है। क्या है इसकी प्रमुख वजह, जानने के लिए यह लेख पढ़ें। 

गुरु तेग बहादुर का प्रारंभिक जीवन

-गुरु तेग बहादुर का जन्म 18 अप्रैल, 1621 को अमृतसर में हुआ था। उनके पिता का नाम हरगोबिंद जी थी, जो कि सिखों के छठे गुरु थे। गुरु तेग बहादुर का बचपन का नाम त्यागमल था।

-गुरु तेग बहादुर जब 13 वर्ष के थे, तो उन्होंने करतारपुर की लड़ाई में मुगलों के खिलाफ तलवार उठाई और अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। उनके साहस को देखते हुए उनके पिता ने उनका नाम बदल दिया। उनका नाम त्यागमल से बदलकर तेग बहादुर रख दिया। इसका अर्थ होता है कि जो तलवार से बहादुर हो।

1664 में बने सिखों के 9वें गुरु

गुरु तेग बहादुर ने अपनी युवावस्था में आध्यात्मिक साधना की और लंबा समय बकाला में बिताया। यहां उन्होंने ध्यान किया। वहीं, सिखों के 8वें गुरु यानि कि गुरु हरकिशन जी के निधन के बाद 1664 में तेग बहादुर को 9वें गुरु के रूप में मान्यता मिली। इसके बाद उन्होंने 1665 में शिवालिक पहाड़ियों की तल पर स्थित आनंदपुर साहिब की स्थापना की। इसे शांति का शहर भी कहा जाता है।

गुरु तेग बहादुर की शिक्षाएं और उपदेश

-उनकी शिक्षाओं में शामिल था कि व्यक्ति को सांसारिक मोहमाया से दूर रहना चाहिए और ईश्वर का नाम लेना चाहिए।

-उनका कहना था कि उस व्यक्ति को सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है, जो न किसी से डरता है और न ही किसी को डराता है।

-गुरु तेग बहादुर ने करूणा और विनम्रता पर जोर दिया।

क्यों कहा जाता है 'हिंद की चादर' 

17वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा कश्मीरी पंडितों पर जबरन इस्लाम धर्म अपनाने का दबाव बनाया जा रहा था, जिसका कश्मीरी पंडितों द्वारा विरोध जताया गया। ऐसे में कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादुर से मिले। इस पर गुरु तेग बहादुर ने उनकी तरफ से खड़े होने का भरोसा दिलाया। गुरु तेग बहादुर ने धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांत पर अडिग रहने की बात कही और जबरन इस्लाम धर्म अपनाने से मना कर दिया।

इस पर 1675 में औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में गुरु तेग बहादुर को सार्वजनिक रूप से शहीद कर दिया गया। आज इस जगह पर शीश गंज गुरुद्वारा है। उनका यह बलिदान किसी विशेष समुदाय के लिए नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए था। यही वजह है कि उन्हें हिंद की चादर भी कहा जाता है।

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Kishan Kumar
Kishan Kumar

Senior content writer

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