तीस्ता नदी को पूर्वी हिमालय की जीवन रेखा के रूप में जाना जाता है। यह नदी सिक्किम और उत्तरी बंगाल के खूबसूरत पहाड़ी इलाकों से होकर बहती है और इस क्षेत्र के लोगों, पारिस्थितिकी तंत्र और अर्थव्यवस्था को बनाए रखने में एक अहम भूमिका निभाती है। हिमालय की ऊंचाइयों से निकलकर, तीस्ता न केवल पानी, बल्कि अपने किनारों पर रहने वाले हजारों लोगों के लिए उम्मीद और आजीविका भी लाती है।
तीस्ता नदी का उद्गम और मार्ग
तीस्ता नदी का उद्गम सिक्किम के उत्तरी भाग में कांगसे ग्लेशियर के पास स्थित त्सो ल्हामो झील से होता है। यह झील 5,000 मीटर से भी ज्यादा की ऊंचाई पर है। वहां से यह नदी गहरी हिमालयी घाटियों, खाइयों और मैदानों से होकर बहती है। यह नदी लगभग 414 किलोमीटर की कुल दूरी तय करती है। यह भारत में सिक्किम और पश्चिम बंगाल से गुजरने के बाद बांग्लादेश में प्रवेश करती है, जहां यह अंत में ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है।
तीस्ता नदी को पूर्वी हिमालय की जीवन रेखा क्यों कहा जाता है?
तीस्ता को पूर्वी हिमालय की जीवन रेखा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह सिक्किम और उत्तरी बंगाल में खेती, पीने के पानी और पनबिजली उत्पादन के लिए जरूरी पानी मुहैया कराती है। नदी के किनारे की उपजाऊ घाटियां चावल, मक्का और चाय की खेती के लिए बहुत अच्छी हैं। यह खेती इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
यह नदी जैव विविधता, जंगलों और वन्यजीवों को भी सहारा देती है। इसलिए, यह पूर्वी हिमालय क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है। तीस्ता के बिना, सिक्किम और उसके आसपास की हरी-भरी पहाड़ियां अपने जीवंत समुदायों और प्राकृतिक सुंदरता को बनाए नहीं रख सकतीं।
आर्थिक और पनबिजली महत्त्व
तीस्ता नदी भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में पनबिजली का एक प्रमुख स्रोत है। तीस्ता स्टेज III और स्टेज IV पनबिजली संयंत्रों सहित कई बड़ी परियोजनाएं इसकी ऊर्जा का उपयोग करती हैं। इन परियोजनाओं से सिक्किम और आस-पास के राज्यों के लिए बिजली पैदा की जाती है।
यह पश्चिम बंगाल में तीस्ता बैराज परियोजना के लिए सिंचाई के पानी का भी एक मुख्य स्रोत है। इस परियोजना से मैदानी इलाकों के हजारों किसानों को फायदा होता है। नदी के उपजाऊ बाढ़ के मैदान खेती और मछली पालन में बड़ा योगदान देते हैं, जिससे स्थानीय आबादी को आमदनी होती है।
सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्त्व
अपने आर्थिक मूल्य के अलावा, तीस्ता सिक्किम और उत्तरी बंगाल के लोगों के लिए गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व रखती है। कई समुदाय इसे पवित्र मानते हैं। उनका मानना है कि यह नदी समृद्धि और शांति लाती है। स्थानीय गीतों, कहानियों और त्योहारों में इसकी मौजूदगी का जश्न मनाया जाता है, जो जीवन और पवित्रता के प्रतीक के रूप में इसकी भूमिका को दिखाता है।
पर्यावरण की दृष्टि से यह नदी कई तरह के पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं को सहारा देती है। यह पूर्वी हिमालय के जैव विविधता हॉटस्पॉट से होकर बहती है, जो दुनिया के सबसे समृद्ध पारिस्थितिक क्षेत्रों में से एक है।
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