तमिलनाडु में स्थित कांचीपुरम को अपनी बेजोड़ मंदिर विरासत, पवित्र परंपराओं और दक्षिण भारत में सदियों से एक आध्यात्मिक राजधानी के रूप में मौजूदगी के कारण 'हजार मंदिरों का शहर' कहा जाता है। यह शहर हिंदू शिक्षा, दर्शन और भक्ति संस्कृति का केंद्र रहा है, खासकर शैव और वैष्णव धर्मों के लिए ऐसा है। आज भी कांचीपुरम तीर्थयात्रियों, विद्वानों और इतिहास में रुचि रखने वालों को आकर्षित करता है। वे यहां इसकी शानदार वास्तुकला और हमेशा बने रहने वाले आध्यात्मिक माहौल को देखने आते हैं।
कांचीपुरम को हजार मंदिरों का शहर क्यों कहा जाता है?
प्राचीन मंदिर विरासत
कांचीपुरम में कभी लगभग एक हजार मंदिर थे, जिन्हें पल्लव, चोल और विजयनगर साम्राज्य जैसे शासक राजवंशों ने बनवाया था। हालांकि, आज वे सभी मंदिर मौजूद नहीं हैं, लेकिन जो मंदिर बचे हैं, वे भारत की प्राचीन धार्मिक विरासत और सांस्कृतिक गहराई का एक जीता-जागता प्रमाण हैं।
भारत का आध्यात्मिक केंद्र
सप्त पुरी, यानी सात पवित्र तीर्थ शहरों में से एक होने के कारण कांचीपुरम आज भी एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहां पूजा-पाठ, त्योहार और पवित्र परंपराएं बिना किसी रुकावट के चलती रहती हैं। इस वजह से सदियों पुरानी आध्यात्मिक प्रथाएं आज भी सुरक्षित हैं।
द्रविड़ वास्तुकला की उत्कृष्ट कृतियां
कैलाशनाथ मंदिर, एकम्बरेश्वर मंदिर और वरदराज पेरुमल मंदिर जैसे ऐतिहासिक मंदिर द्रविड़ वास्तुकला के बेहतरीन नमूने हैं। ऊंचे गोपुरम, नकाशीदार खंभे और पत्थर की मूर्तियां प्राचीन दक्षिण भारत की कलात्मक प्रतिभा और बेहतरीन इंजीनियरिंग को दर्शाते हैं।
कांचीपुरम के मंदिरों के बारे में दिलचस्प तथ्य
एकम्बरेश्वर मंदिर में एक पवित्र आम का पेड़ है। माना जाता है कि यह पेड़ 3,500 साल से भी ज्यादा पुराना है और इस पर चार अलग-अलग किस्म के आम लगते हैं। ये चारों किस्में चार वेदों का प्रतीक मानी जाती हैं। इस वजह से यह मंदिर भारत में एक अनोखा धार्मिक और प्राकृतिक अजूबा है।
-7वीं सदी में पल्लवों द्वारा बनवाया गया कैलाशनाथ मंदिर, दक्षिण भारत के सबसे शुरुआती पत्थर से बने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में बलुआ पत्थर पर की गई बारीक नक्काशी ने द्रविड़ मंदिर वास्तुकला की नींव रखी।
-कांचीपुरम उन कुछ पवित्र शहरों में से एक है, जहां भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों को समर्पित बड़े मंदिर मौजूद हैं। मंदिरों का यह संतुलन इसे हिंदू परंपराओं में धार्मिक सद्भाव और एकता का प्रतीक बनाता है।
-कांचीपुरम के कई मंदिरों में प्राचीन कुंड (यानी पानी के तालाब) हैं। इनका इस्तेमाल धार्मिक स्नान और पवित्र समारोहों के लिए किया जाता है। इन कुंडों को इस तरह बनाया गया है कि इनमें पानी का बहाव प्राकृतिक रूप से होता है। यह व्यवस्था प्राचीन काल से काम कर रही है, जो उस समय के उन्नत जल प्रबंधन के ज्ञान को दिखाती है।
-गोबेकली टेपे दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात मंदिर स्थल है, जो लगभग 9600 ईसा पूर्व का है। इसमें गोलाकार पत्थर की संरचनाएं और बहुत उन्नत नक्काशी है। इससे यह पता चलता है कि खेती करने वाले समाजों के बसने से हजारों साल पहले भी आध्यात्मिक समुदाय मौजूद थे।
-बिहार का मुंडेश्वरी मंदिर भारत के उन सबसे पुराने मंदिरों में से एक है, जहां आज भी लगातार पूजा होती है। माना जाता है कि यह मंदिर लगभग 108 ईस्वी में बना था। यह मंदिर भगवान शिव और शक्ति को समर्पित है। यह प्राचीन नागर-शैली की वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है और यहां पूजा-पाठ की परंपरा कभी नहीं टूटी है।
पढ़ेंःट्रेन के कोच पर क्यों लिखा होता है ‘EV, जानें
Comments
All Comments (0)
Join the conversation