आज की दुनिया जहाँ तेज़ रफ्तार SUVs और हाईटेक गाड़ियों की ओर बढ़ रही है, वहीं भारत में एक ऐसा अनोखा गांव है जहाँ आज भी ब्रिटिश काल की पुरानी लैंड रोवर गाड़ियाँ सड़कों पर दौड़ती दिखाई देती हैं और सबका ध्यान अपनी ओर खींच लेती हैं।
यहाँ की खास बात यह है कि जब पूरी दुनिया तकनीक की नई ऊँचाइयों को छू रही है, मानेभंजन (Manebhanjan) आज भी 60 से 70 साल पुरानी लैंड रोवर गाड़ियों को सहेज कर रखे हुए है। ये गाड़ियाँ आज भी गांव की ऊबड़-खाबड़, चढ़ाई भरी सड़कों पर आसानी से दौड़ती हैं जैसे वक्त उनके लिए थमा हुआ हो।
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यह गांव है 'लैंड रोवर्स की धरती':
Manebhanjan यह गांव है मानेभंजन, जो पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग से लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर भारत-नेपाल सीमा के नज़दीक बसा हुआ है। यह न केवल अपनी सुरम्य पहाड़ियों और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है, बल्कि एक खास ऐतिहासिक विरासत के लिए भी प्रसिद्ध है "लैंड रोवर्स की धरती" के रूप में।
कैसे पहुंची लैंड रोवर यहां तक?
मानेभंजन में लैंड रोवर गाड़ियों की शुरुआत 1960 के दशक में मानी जाती है, जब ब्रिटिश चाय बागान मालिकों को इन ऊँचे-नीचे, पत्थरीले रास्तों से होकर आना-जाना होता था। उस समय पहाड़ी इलाकों में सड़कों की हालत बेहद खराब थी। लैंड रोवर सीरीज़ 1 और बाद की मॉडल्स, जिन्हें 1948 से इंग्लैंड के सोलिहुल शहर में बनाया गया था, इन दुर्गम रास्तों के लिए उपयुक्त साबित हुईं।
कहा जाता है कि एक समय मानेभंजन की गलियों में 300 से अधिक लैंड रोवर गाड़ियाँ दौड़ती थीं। आज, समय के साथ इनका उपयोग कम हुआ है लेकिन बंद नहीं हुआ है।
क्या खास है मानेभंजन में?
बता दें कि यदि आप संकटकफू जैसी ऊंची चोटियों की ओर जाना चाहते हैं, जहाँ से कंचनजंघा और एवेरेस्ट जैसे हिमालयी शिखरों के दृश्य नजर आते हैं. मानेभंजन केवल लैंड रोवरों तक सीमित नहीं है। यहाँ के स्थानीय नेपाली और बंगाली खाने का स्वाद भी लोगों को खूब भाता है।
मानेभंजन केवल एक गांव नहीं है, यह एक विरासत है, जो समय के साथ भी ठहरी हुई है। यह जगह उस दौर की याद दिलाती है जब तकनीक का मतलब मजबूती और विश्वसनीयता था। अगर आप दार्जिलिंग की सैर पर हैं, तो मानेभंजन ज़रूर जाये।
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