दिल्ली को इतिहास का शहर कहा जाता है। क्योंकि, प्राचीन इतिहास उठाकर देखें, तो दिल्ली को सात बार बसाया गया और उजाड़ा गया। इस दौरान दिल्ली ने दिल्ली सल्तनत से लेकर मुगल वंश और अंत में ब्रिटिश राज देखा। इतने लंबे समय में दिल्ली में कई ऐतिहासिक भवनों का निर्माण हुआ। इनमें से एक है दिल्ली का शाहजहांनाबाद शहर, जिसे आज हम पुरानी दिल्ली के रूप में भी जानते हैं।
यह शहर कभी एक मजबूत दीवार के घेरे में बसा हुआ था। हालांकि, अतीत के आइने में यह दीवार का यह रूप अब धुंधला पड़ चुका है। लेकिन, यही वह दीवार थी, जिसने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों को दिल्ली में घुसने से रोका था। इस लेख के माध्यम से हम आज दिल्ली की इस ऐतिहासिक दीवार के बारे में जानेंगे।
शाहजहां ने दिल्ली को क्यों बनाया राजधानी
मुगल सम्राट शाहजहां आगरा के किले में रहा करते थे। उनकी वास्तुकला में गहन रूचि थी। समय के साथ आगरा एक घनी आबादी वाला शहर बन गया था। वहीं, शाही जुलूस के दौरान आगरा की तंग गलियां शाहजहां को नापसंद थी। वहीं, दिल्ली उत्तर से लेकर दक्षिण के बीच एक महत्त्वपूर्ण केंद्र पर स्थित है। ऐसे में उन्होंने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया।
शाहजहां की बेटी जहांआरा ने रखी पुरानी दिल्ली की नींव
यमुना के पास बसी पुरानी दिल्ली की नींव को शाहजहां की सबसे बड़ी बेटी जहांआरा ने रखा था। इसके बाद 1638 में लाल किले का निर्माण शुरू हुआ। वहीं, नए शहर को बसाने के साथ चारों ओर एक सुरक्षा घेरे के लिए दीवार निर्माण का भी निर्णय लिया गया।
1,50,000 में बनी पहली दीवार, लेकिन ढह गई
शाहजहां ने शाहजहांनाबाद के चारों ओर एक दीवार बनवाई। इस दीवार को मिट्टी और पत्थरों से बनाया गया था। उस समय इस दीवार की लागत 1 लाख 50 हजार रुपये आई थी। लेकिन, एक रोज तेज बारिश में यह दीवार टिक नहीं सकी और ढह गई।
4 लाख रुपये आई लागत
शहाजहां ने 1657 में पुरानी दीवार की जगह नई दीवार बनाने का निर्णय लिया। क्योंकि, नए शहर की सुरक्षा बहुत अहम थी। उस समय चार लाख रुपये की लागत से चूना और सुर्खी यानि कि पीसी हुई ईंटों के मसालों इस्तेमाल किया गया।
7 साल में बनकर तैयार हुई दूसरी दीवार
शाहजहांनाबाद की दीवार पूरे 7 साल में बनकर तैयार हुई थी। दीवार की कुल ऊंचाई 26 फीट और चौड़ाई 12 फीट थी। दीवार की कुल लंबाई 6 किलोमीटर थी, जो कि 1500 एकड़ के क्षेत्र को कवर करती थी। दीवार के बाहरी हिस्से में लाल बलुआ पत्थर थे, तो कुछ जगहों पर छोटी और पतली लाखौरी ईंटों का भी इस्तेमाल किया गया था। उस समय दीवार में कुल 13 गेट और 14 खिड़कियां हुआ करती थीं। 1852 में इसमें कलकत्ता गेट जोड़ा था। दीवार में जगह-जगह 27 बुर्जों का भी निर्माण किया गया था।
1857 की क्रांति में टूटी दीवार
अंग्रेजों ने जब 1857 की क्रांति में दिल्ली में पुनः नियंत्रण की कोशिश की, तब उन्होंने इस दीवार को जगह-जगह से तोड़ दिया। पहले दीवार के चारों तरफ एक गहरी खाई भी हुआ करती थी, जिसमें पानी भरा रहता था। इस खाई को भी पाट दिया गया। आज भी इस दीवार के कुछ अवशेष देखने को मिल जाएंगे।
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