Glacier और Iceberg में क्या होता है अंतर, जानें

Nov 21, 2025, 18:32 IST

ग्लेशियर जमीन पर बर्फ की बहुत बड़ी और धीरे-धीरे खिसकने वाली संरचनाएं हैं, जबकि आइसबर्ग ग्लेशियर के वे टुकड़े होते हैं, जो टूटकर समुद्र में तैरते हैं। ग्लेशियर स्थिर होते हैं और सदियों में जमीन के स्वरूप को बदल देते हैं, जबकि आइसबर्ग अस्थायी होते हैं और समुद्री धाराओं के साथ लगातार बदलते रहते हैं। दोनों ही जलवायु नियंत्रण के जरूरी हिस्से हैं। ये वैज्ञानिकों को पृथ्वी के पर्यावरण संतुलन और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के बारे में जानकारी देते हैं।

ग्लेशियर और आइसबर्ज में अंतर
ग्लेशियर और आइसबर्ज में अंतर

ग्लेशियर और आइसबर्ग प्रकृति की सबसे प्रभावशाली बर्फीली संरचनाओं में से हैं। अपने मिलते-जुलते आकार और ठंडे वातावरण से जुड़े होने के कारण अक्सर लोग इन्हें एक ही समझ लेते हैं। हालांकि, अपनी उत्पत्ति, बनावट और व्यवहार के मामले में ये अलग-अलग होते हैं। ग्लेशियर बर्फ की विशाल नदियों की तरह होते हैं। ये हजारों सालों तक बर्फ के दबकर जमा होने से जमीन पर बनते हैं और धीरे-धीरे बहते हैं। अपनी गति के दौरान वे कटाव और जमाव, दोनों से पृथ्वी की सतह को बदल देते हैं। आइसबर्ग बर्फ का एक बड़ा तैरता हुआ टुकड़ा होता है, जो किसी ग्लेशियर या बर्फ की चट्टान से टूटकर अलग हो जाता है।

ग्लेशियर स्थिरता और समय के साथ बने रहने का प्रतीक हैं, जबकि आइसबर्ग अस्थायी होते हैं, क्योंकि वे समुद्री धाराओं के साथ तैरते और पिघलते रहते हैं। ग्लेशियर को समझना इसलिए जरूरी है, क्योंकि इससे हमें पृथ्वी के भूगोल में उनके योगदान को जानने में मदद मिलती है। साथ ही, यह भी पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन हमारे बर्फीले वातावरण को कैसे प्रभावित कर रहा है।

उत्पत्ति

ग्लेशियर का निर्माण जमीन पर होता है। यह तब बनता है, जब सालों तक भारी मात्रा में बर्फ जमा होती रहती है और अत्यधिक दबाव के कारण घने बर्फ में बदल जाती है। इस प्रक्रिया में सैकड़ों या हजारों साल लग सकते हैं। बर्फ का भारी वजन ही उसे धीरे-धीरे बहने पर मजबूर करता है, जिससे अंत में ग्लेशियर का रूप बनता है।

आइसबर्ग मूल रूप से ग्लेशियर या बर्फ की चट्टान का एक टुकड़ा होता है, जो टूटकर समुद्र में बहने लगता है। संक्षेप में, ग्लेशियर से ही आइसबर्ग बनते हैं। लेकिन, आइसबर्ग सिर्फ बर्फ के टुकड़े होते हैं, जो कहीं और जमा हुई बर्फ से टूटकर समुद्री पानी में तैरने लगते हैं।

स्थान

ग्लेशियर ध्रुवीय जलवायु और ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं में पाए जाते हैं, बस शर्त यह है कि तापमान बर्फ को जमाए रखने के लिए पर्याप्त ठंडा हो। बड़े ग्लेशियर अंटार्कटिका, ग्रीनलैंड, हिमालय और आल्प्स जैसी जगहों पर मौजूद हैं। वहीं, आइसबर्ग समुद्रों में तैरते हुए पाए जाते हैं, खासकर आर्कटिक और अंटार्कटिका के आसपास ऐसा है।

आइसबर्ग हवा और समुद्री धाराओं के कारण अपने मूल ग्लेशियर स्रोत से दूर चले जाते हैं। इसका नतीजा यह है कि ग्लेशियर जमीन पर रहते हैं, जबकि आइसबर्ग पानी में तैरते रहते हैं, जो कभी ग्लेशियर का हिस्सा थे।

गति

ग्लेशियर अपने भारी वजन और दबाव के कारण बहुत धीरे-धीरे चलते हैं। इस दबाव से बर्फ का आकार बदलता है और वह नीचे की ओर या बाहर की ओर खिसकने लगती है। इस तरह ग्लेशियर पूरे भूदृश्य को बदल सकते हैं। वे घाटियां बना सकते हैं, झीलों की जगह बदल सकते हैं और दूसरी भू-आकृतियां बना सकते हैं।

आइसबर्ग पूरी तरह से अलग तरीके से चलते हैं। वे समुद्री धाराओं और हवा की दिशा पर तैरते हैं। आइसबर्ग की गति पानी के तापमान, ज्वार-भाटा और हवा की दिशा पर निर्भर करती है। ग्लेशियर जमीन पर धीरे-धीरे खिसकते हैं, लेकिन आइसबर्ग पानी पर तैरते हैं और गर्म पानी से गुजरते हुए धीरे-धीरे पिघलते जाते हैं।

आकार और बनावट

ग्लेशियर आकार में बहुत बड़े हो सकते हैं। वे पूरी पर्वत श्रृंखलाओं या यहां तक कि महाद्वीप के कुछ हिस्सों को भी ढक सकते हैं, जैसा कि अंटार्कटिक और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादरों के मामले में है। ग्लेशियर बर्फ की जमी हुई परतों से बने होते हैं, जिनका वजन और मोटाई बहुत ज्यादा हो सकती है।

आइसबर्ग कई अलग-अलग आकारों में आते हैं। वे तैरते हुए बर्फ के छोटे टुकड़े भी हो सकते हैं और बहुत बड़े टुकड़े भी हो सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि किसी आइसबर्ग का केवल दसवां हिस्सा ही पानी की सतह के ऊपर दिखाई देता है और बाकी नौ-दसवां हिस्सा पानी के नीचे डूबा रहता है। यह बात दिलचस्प होने के साथ-साथ जहाजों के लिए चिंता का कारण भी बन सकती है।

महत्त्व

ग्लेशियर और आइसबर्ग दोनों ही पृथ्वी के पर्यावरण के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ग्लेशियर में पृथ्वी का लगभग 70 प्रतिशत ताजा पानी जमा है। वे जलवायु परिवर्तन के प्रमुख संकेतक भी हैं, क्योंकि ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का जल स्तर बढ़ेगा। आइसबर्ग जब धीरे-धीरे पिघलकर ताजा पानी छोड़ते हैं, तो वे समुद्री धाराओं और समुद्री इकोसिस्टम को प्रभावित करते हैं। आइसबर्ग जहाजों के रास्तों के लिए भी महत्त्व रखते हैं, भले ही वे अस्थायी होते हैं।

ग्लेशियर और आइसबर्ग के बीच के अंतर और दोनों के पारिस्थितिक महत्त्व को समझकर हम बेहतर स्थिति में होते हैं। इससे हम पर्यावरणीय बदलावों का अनुमान लगा सकते हैं। हम ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों और इससे भी महत्त्वपूर्ण, ग्रह के क्रायोस्फीयर (बर्फीले हिस्से) पर पड़ने वाले असर की जांच कर सकते हैं।

Kishan Kumar
Kishan Kumar

Senior content writer

A seasoned journalist with over 7 years of extensive experience across both print and digital media, skilled in crafting engaging and informative multimedia content for diverse audiences. His expertise lies in transforming complex ideas into clear, compelling narratives that resonate with readers across various platforms. At Jagran Josh, Kishan works as a Senior Content Writer (Multimedia Producer) in the GK section. He can be reached at Kishan.kumar@jagrannewmedia.com
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