भारत में करोड़ों पुरुष अपने नाम के पीछे कुमार उपनाम का प्रयोग करते हैं। यह ऐसा उपनाम है, जो कि किसी भी जाति या समुदाय द्वारा प्रयोग किया जा सकता है। सामान्य वर्ग में इसे अधिकांश रूप से प्रयोग किया जाता है। खास बात यह है कि यह सिर्फ पंरपरा नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक प्रतीक बन गया है।
हालांकि, क्या आप इसका इतिहास जानते हैं कि आखिर नाम के पीछे कुमार शब्द कहां से आया है और इसका प्रयोग क्यों किया जाता है, यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे।
क्या होता है कुमार का अर्थ
सबसे पहले हम कुमार शब्द का अर्थ जान लेते हैं। आपको बता दें कि 'कुमार' शब्द संस्कृत के 'कुमार' से लिया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ 'पुत्र', 'लड़का', 'युवा', 'कुंवारा' या 'राजकुमार' से होता है। दूसरे अर्थों में यह शब्द देखें, तो युवावस्था, पौरुष और मासूमियत या फिर कुलीनता से जुड़ा हुआ है।
क्या है ऐतिहासिक संदर्भ
हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, भगवान शिव और पार्वती देवी के पुत्र भगवान कार्तिकेय को कुमार नाम से भी जाना जाता है। उन्हें देवताओं के सेनापति और सनातन युवा भी माना जाता है, जिससे कुमार शब्द को पवित्र अर्थ मिलता है।
क्या है शाही संबंध
प्राचीन भारत का इतिहास उठाकर देखें, तो कुमार शब्द का प्रयोग अक्सर राजकुमारों या शाही परिवार के युवाओं द्वारा किया जाता था। यह एक उपाधि की तरह था। उदाहरण के तौर पर देखें, तो गुप्त वंश में कुमारगुप्त इसका उदाहरण देखने को मिलता है।
समानता और आधुनिकता का प्रतीक
भारत की आजादी के बाद कुमार शब्द ने लोगों को जातिगत पहचान से मुक्ति दिलाने में मदद की है। क्योंकि, कुछ मामलों में जातिगत पहचान की वजह से लोगों को भेदभाव का सामना भी करना पड़ा है। इसे देखते हुए कुमार शब्द अधिक प्रचलित होता चला गया।
भारत में सबसे कॉमन सरनेम
कुमार उपनाम भारत में सबसे कॉमन सरनेम है, जिसका सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। यह ऐसा उपनाम है कि किसी भी जाति या समुदाय के लोग इसे अपने नाम के साथ इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग इसे अपने नाम से पहले लिखते हैं, तो कुछ लोग अपने नाम के मध्य में लिखते हैं, वहीं कुछ लोगों द्वारा यह अंत में जोड़ा जाता है। उदाहरण- कुमार गौरव, गौरव कुमार सिंह और गौरव कुमार।
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