रेलगाड़ी, जुड़े हुए वाहनों या रेल कारों की एक श्रृंखला होती है, जो रेलवे ट्रैक पर चलती हैं और आमतौर पर एक इंजन द्वारा खींची जाती हैं। रेलगाड़ियों का उपयोग यात्रियों और माल, दोनों के परिवहन के लिए किया जाता है। वैसे तो हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक उद्देश्य के लिए अलग-अलग प्रकार की गाड़ियां डिज़ाइन की जाती हैं। ये परिवहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और दुनिया भर में यात्री और माल परिवहन में भी काफी अहम है।
ये तो हम सभी जानते हैं कि दुनिया भर में विभिन्न प्रकार की रेलगाड़ियां है। इन्हीं में से एक है बुलेट ट्रेन है। भारत में भले ही अभी बुलेट ट्रेन की शुरुआत नहीं हुई है, लेकिन इसकी तेज रफ्तार और अनोखी डिजाइन सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। खासकर इसकी नुकीली नाक जैसी लंबी गर्दन, जो किसी पक्षी की चोंच जैसी लगती है।
हालांकि, क्या आपने कभी ये सोचा है कि केवल बुलेट ट्रेन के आगे हिस्से ही लंबे और पतले क्यों होते हैं? जबकि बाकी सभी ट्रेनों की बनावट एक समान होती है? दरअसल, इसके पीछे भी एक विज्ञान छिपा है। आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे की कहानी-
तेज रफ्तार और आवाज का संबंध
1990 के दशक में, जब जापान में बुलेट ट्रेनों की गति बढ़ने लगी, तो एक अनचाही समस्या उत्पन्न हो गई। जब ये ट्रेनें सुरंगों में प्रवेश करतीं, तो उनके सामने की हवा इतनी तेज़ी से संकुचित होती कि सुरंग के दूसरे छोर पर एक तेज धमाके की आवाज सुनाई देती। यह आवाज इतनी तेज होती थी कि आस-पास के लोग चौंक जाते और कभी-कभी तो इसे विस्फोट भी मान लेते।
यह कोई खराबी नहीं, बल्कि हवा के दबाव का नतीजा था। जब कोई तेज गति वाली ट्रेन किसी बंद जगह में प्रवेश करती है, तो सामने की हवा अचानक सिकुड़ जाती है और एक ज़ोरदार धक्का देती है, जिससे एक तेज़ धमाके की आवाज़ आती है।
किंगफिशर के चोंच से मिला बुलेट ट्रेन बनाने का आइडिया
जब यह समस्या सभी के नजर में आने लगी तब इसे हल करने की जिम्मेदारी एइजी नाकात्सु नाम के एक जापानी इंजीनियर को मिली, लेकिन नाकात्सु सिर्फ इंजीनियर ही नहीं थे, वो एक शौकीन पक्षी-विज्ञानी (Bird Watcher) भी थे।
जब उन्होंने एक किंगफिशर पक्षी को पानी में छलांग लगाते देखा, तब वो यह देखकर हैरान रह गए कि इतनी तेजी से नीचे गिरने के बाद भी, वह पक्षी पानी की सतह पर बिना छींटे उड़ाए अंदर चला गया। किंगफिशर ने बिना किसी हलचल के सीधे अपने शिकार पर कब्जा कर लिया।
नाकात्सु यह समझ गए कि किंगफिशर की चोंच ऐसी थी कि वह हवा और पानी दोनों के प्रतिरोध को बेहद ही कम करती है। यही से उन्हें यह आइडिया सुझा, जिसके बाद उन्होंने बुलेट ट्रेन की आगे की बॉडी को पक्षी के चोंच की तरह डिजाइन किया।
जब ट्रेन बनी पक्षी जैसी
नाकात्सु और उनकी पूरी टीम ने बुलेट ट्रेन की आगे की बनावट को किंगफिशर की चोंच जैसा ही डिजाइन किया बिल्कुल लंबी, पतली और नुकीली।
कैसे रहे नतीजे
सुरंग में घुसने के बाद धमाकों का आवाजें आनी बंद हो गई।
ट्रेन की स्पीड और स्थिरता दोनों बढ़ गई।
हवा के दबाव से होने वाली प्रतिरोध कम हुई, जिससे ऊर्जा में भी सहुलियत मिली।
यह डिजाइन हवा को चीर कर तेज रफ्तार में आसानी से दौड़ पाती है।
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