बॉलपॉइंट पेन शायद हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में सबसे आम चीज है, जिसका इस्तेमाल घरों, दफ्तरों, स्कूलों और ऐसी हर जगह पर होता है, जहां लोग लिखते हैं। इसके आविष्कार ने स्याही से लिखने, जरूरी दस्तावेजों पर दस्तखत करने और अपने विचारों को कागज पर उतारने के तरीके को बदल दिया। लेकिन, बॉलपॉइंट पेन असल में किसने बनाया था और यह आज इस्तेमाल होने वाला एक आसान और असरदार साधन कैसे बना? इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे।
शुरुआती इतिहास: पहले बॉलपॉइंट पेन का पेटेंट
एक घूमने वाली छोटी बॉल के जरिए स्याही छोड़ने वाले पेन का विचार पहली बार 1800 के दशक के अंत में आया था। अमेरिकी वकील और आविष्कारक जॉन जे. लाउड ने 1888 में बॉलपॉइंट पेन के लिए पहला ज्ञात पेटेंट दायर किया। लाउड ने अपना पेन इसलिए बनाया था ताकि वह लकड़ी और चमड़े जैसी खुरदरी चीजों पर लिख सके।
जॉन जे. लाउड का पेन (1888)
लाउड के डिजाइन में एक सॉकेट के अंदर एक छोटी स्टील की बॉल होती थी, जो घूमकर लिखने वाली सतह पर स्याही पहुंचाती थी। हालांकि, यह एक नया विचार था, लेकिन इसमें स्याही के बहाव से जुड़ी कई समस्याएं थीं। यह रोजमर्रा के कागज पर लिखने के लिए बहुत खुरदुरा था, जिस वजह से यह कभी भी व्यावसायिक रूप से सफल नहीं हो सका।
इसलिए, हालांकि लाउड ने बॉलपॉइंट की कार्यप्रणाली की नींव रखी, लेकिन उनका डिजाइन कागज पर रोज के इस्तेमाल के लिए ठीक नहीं था और कभी भी बाजार में अपनी जगह नहीं बना पाया।
आधुनिक बॉलपॉइंट पेन: लैस्जलो बीरो का नया आविष्कार
आज हम जिस रूप में बॉलपॉइंट पेन को जानते हैं, उसे 1938 में हंगरी के पत्रकार लैस्जलो बीरो ने बनाया था। बीरो फाउंटेन पेन की परेशानियों से तंग आ चुके थे। उसे बार-बार भरने की जरूरत पड़ती थी और उसकी स्याही कागज पर फैल जाती थी।
बीरो की मुख्य सोच
बीरो ने देखा कि अखबार की छपाई में इस्तेमाल होने वाली स्याही जल्दी सूख जाती है और फैलती नहीं है, लेकिन वह इतनी गाढ़ी थी कि फाउंटेन पेन से नहीं निकल सकती थी। उन्होंने अपने भाई ग्योर्गी बीरो, जो एक केमिस्ट थे, के साथ मिलकर एक खास गाढ़ी स्याही और एक बॉल-और-सॉकेट प्रणाली बनाने के लिए प्रयोग किए। इससे स्याही का बहाव आसान हो गया और पेन बंद होने की समस्या भी दूर हो गई।
उन्होंने जून 1938 में अपने डिजाइन के लिए एक ब्रिटिश पेटेंट जमा किया। उन्होंने एक ऐसा पेन बनाया, जिसमें जल्दी सूखने वाली स्याही और घूमने वाली बॉल एक साथ काम करती थी, जिससे स्याही लगातार और भरोसेमंद तरीके से निकलती थी।
सेना द्वारा अपनाया जाना
इस पेटेंट को ब्रिटिश आपूर्ति मंत्रालय ने खरीद लिया और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रॉयल एयर फोर्स के पायलटों के लिए बॉल पेन बनाए गए। फाउंटेन पेन ज्यादा ऊंचाई पर लीक हो जाते थे, लेकिन बॉलपॉइंट पेन बिना किसी दिक्कत के काम करता था। इस घटना ने इसकी विश्वसनीयता की साख को और मजबूत कर दिया।
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