भारत ने जलवायु संबंधी आपदाओं से निपटने की क्षमता में उल्लेखनीय प्रगति की है, जो जर्मनवॉच द्वारा प्रकाशित 2025 ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स में दिखाई देती है। मौसम की गंभीर घटनाओं से बार-बार प्रभावित होने के बावजूद, भारत ने अपनी रैंकिंग में सुधार किया है। यह देश की आपदाओं से निपटने की बेहतर तैयारी और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढलने की क्षमता को दिखाता है। यह विकास जलवायु जोखिमों के सक्रिय प्रबंधन पर भारत के बढ़ते जोर को दर्शाता है, साथ ही यह टिकाऊ बुनियादी ढांचे और नीतियों में लगातार निवेश की जरूरत पर भी प्रकाश डालता है।
ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स क्या है?
जर्मनवॉच की यह सालाना रिपोर्ट यह आकलन करती है कि कौन से देश तूफान, बाढ़ और लू जैसी मौसम संबंधी घटनाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। यह इंडेक्स कम समय (सालाना) और लंबी अवधि (दशकों) के आधार पर मौतों और आर्थिक नुकसान के रूप में प्रभावों को मापता है। रैंकिंग में निचला स्थान कम जोखिम या जलवायु चुनौतियों के बेहतर प्रबंधन को दिखाता है।
CRI 2025 में भारत की बेहतर रैंकिंग
1995-2024 की लंबी अवधि के जलवायु जोखिम इंडेक्स में भारत दुनिया भर में 9वें स्थान पर रहा। यह पिछले साल के 8वें स्थान की तुलना में एक सुधार है।
2024 के सालाना इंडेक्स में यह 10वें स्थान से सुधरकर 15वें स्थान पर आ गया।
यह रैंकिंग पिछले 30 सालों में मौसम की 430 गंभीर घटनाओं के कारण हुई 80,000 से ज्यादा मौतों और लगभग 170 अरब डॉलर के आर्थिक नुकसान के आंकड़ों पर आधारित है।
यह सुधार दिखाता है कि भारत ने आपदाओं से निपटने की तैयारी और पूर्व चेतावनी प्रणालियों को बेहतर बनाया है। साथ ही, यह जलवायु अनुकूलन नीतियों को सफलतापूर्वक लागू करने का भी संकेत है।
भारत को प्रभावित करने वाली प्रमुख जलवायु आपदाएं
भारत ने जलवायु परिवर्तन के कारण कई बड़ी आपदाओं का सामना किया है, जिनसे यहां के जोखिम की स्थिति तय हुई है:
2014 में चक्रवात हुदहुद और 2020 में चक्रवात अम्फान ने बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया।
2013 की उत्तराखंड बाढ़ के कारण जान-माल का बहुत ज्यादा नुकसान हुआ था।
1998, 2002, 2003 और 2015 में चली जानलेवा लू ने स्वास्थ्य और खेती के लिए गंभीर खतरे पैदा किए।
ये खास घटनाएं जलवायु जोखिम के अच्छे प्रबंधन और मजबूत बुनियादी ढांचे के महत्व को दिखाती हैं।
भारत में जलवायु संबंधी आपदाओं से निपटने की क्षमता बढ़ाने के लिए सरकारी पहल
भारत की इस बेहतर स्थिति का श्रेय सरकार की सक्रिय कोशिशों को भी जाता है, जैसे:
राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change), जो टिकाऊ विकास और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने पर ध्यान देती है।
आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिए गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure) यानी CDRI, एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन है। इसका मुख्यालय भारत में है और इसका मकसद बुनियादी ढांचे को जलवायु संबंधी आपदाओं से सुरक्षित बनाना है।
पूर्व चेतावनी प्रणालियों, आपातकालीन प्रतिक्रिया और रिकवरी व्यवस्था पर ज्यादा जोर दिया गया है।
ये सभी व्यवस्थाएं मिलकर भारत की कमजोरियों को कम करने और आपदाओं के प्रभाव को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की क्षमता को बढ़ाती हैं।
वैश्विक संदर्भ: जलवायु घटनाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित देश
रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की लगभग 40% आबादी उन 11 देशों में रहती है जो जलवायु संबंधी आपदाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। इनमें भारत और चीन भी शामिल हैं।
लंबी अवधि में सबसे ज्यादा जलवायु जोखिम डोमिनिका, म्यांमार और होंडुरास में है।
2024 में सालाना तौर पर सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों में सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनाडाइन्स, ग्रेनाडा और चाड शामिल थे।
शीर्ष 30 देशों में अमेरिका, फ्रांस और इटली जैसे अन्य औद्योगिक देश भी शामिल हैं। इससे पता चलता है कि कोई भी अर्थव्यवस्था जलवायु जोखिमों से सुरक्षित नहीं है।
भारत के लिए चुनौतियां और आगे की राह
हालांकि यह रैंकिंग भारत के लिए एक सकारात्मक बदलाव है, फिर भी देश के सामने जलवायु से जुड़ी कई चुनौतियां हैं:
बार-बार आने वाली जलवायु संबंधी आपदाएं कमजोर क्षेत्रों में रिकवरी और टिकाऊ विकास में बाधा डालती हैं। जलवायु घटनाओं के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान अभी भी बहुत बड़ा है, जिसके लिए अनुकूलन में और ज्यादा निवेश की जरूरत है।
भविष्य के जोखिमों से अच्छी तरह निपटने के लिए ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने, कार्बन उत्सर्जन को कम करने और कमजोर समुदायों की सुरक्षा करने की तत्काल जरूरत है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में जलवायु आपदाओं से निपटने की क्षमता को और मजबूत करने के लिए लगातार कोशिशों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत है।
ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2025 में भारत की बेहतर रैंकिंग, जलवायु जोखिम प्रबंधन और आपदाओं से निपटने की क्षमता के निर्माण में हुई प्रगति का प्रमाण है। भारत का यह सफर काफी उपलब्धियों भरा रहा है, लेकिन अभी भी सतर्कता, नई खोज और टिकाऊ जलवायु समाधानों में निवेश की लगातार जरूरत है। तेजी से बढ़ते वैश्विक जलवायु परिवर्तन के इस दौर में यह अनुभव, विकास और पर्यावरण संबंधी जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाने का एक अच्छा उदाहरण पेश करता है।
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